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गजेन्द्र की आत्महत्या और कुछ अनसुलझे सवाल !!

yuva Vichaar
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बेमौसम बारिश और ओला वृष्टि से देश के किसानों के हाल बेहाल हो रहे है. अखबार किसानों की आत्महत्या की ख़बरों से पटे पड़े है. सभी राजनैतिक दलों में किसानों का सबसे बड़ा हितैषी होने की होड़ लगी हुई है. किसान पहले भी राजनीति का सिर्फ एक मोहरा था और आज भी उसकी हालत वही है. इसके साथ ही सभी दल किसानों को सीधे तौर पर प्रभावित करने वाले भूमि अधिग्रहण बिल पर अपनी रोटियां सेंकने में व्यस्त है.
ऐसे हालातों के बीच ‘आप’ की जनसभा में जंतर मंतर पर एक किसान की आत्महत्या करने की ख़बर से पूरा देश स्तब्ध रह गया. राजस्थान के दौसा जिले के रहने वाले गजेन्द्र सिंह ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के मंच से कुछ मीटर की दूरी पर पेड़ से लटक कर आत्महत्या कर ली. प्रथम दृष्ट्या तो यह फसल के बर्बाद होने के चलते आत्महत्या का मामला लगता है. परन्तु यह हादसा कई और प्रश्न भी खड़े कर रहा है. गजेन्द्र कोई साधरण किसान नहीं था. वह एक संपन्न परिवार से था और उसकी अपनी राजनैतिक महत्वकांक्षाए थी. वह 2008 और 2013 में सपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव भी लड़ चुका था. वह अब आम आदमी पार्टी से जुड़ना चाहता था. ऐसी स्तिथि में उसने ‘आप’ की रैली में ख़ुदकुशी करने का निर्णय क्यों लिया ?? गजेन्द्र की आत्महत्या के बाद भी ‘आप’ की सभा चलती रही यह आम आदमी पार्टी के नेताओं की संवेदनशीलता पर भी सवाल खड़े करता है ??
दौसा जिले के कलेक्टर कैलाश शर्मा का भी कहना है कि सिर्फ फसल की बर्बादी आत्महत्या का कारण हो इसकी संभावना कम है. गजेन्द्र का गाँव बांदीकुई बसवा तहसील में पड़ता है. बसवा तहसील में फसल ३३ % से भी कम खराब हुई है जिसके चलते गजेन्द्र के गाँव में किसी को भी मुआवजे की पात्रता नहीं है. गजेन्द्र ने किसी स्थानीय अधिकारी के पास मुआवजे की अर्जी भी नहीं लगाई थी. तो क्या इस दुखद हादसे के पीछे कोई साजिश है ? क्या गजेन्द्र को आत्महत्या करने के लिए उकसाया गया था ? क्या अधिक से अधिक मीडिया कवरेज के लिए उसे आत्महत्या का प्रयास करने के लिए जंतर मंतर बुलाया गया था ? इन सभी अनसुलझे सवालों के जवाब मिलना चाहिए . बहरहाल, दिल्ली सरकार ने पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिए है. इस मामले की निष्पक्षता के साथ जांच होनी चाहिए जिससे आत्महत्या का असल कारण पता लग सके.

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